मथुरा: मथुरा लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष में विभीषणों ने प्रत्याशियों की नींद हराम कर रखी है। इस लोकसभा सीट का चुनाव 26 अप्रैल को होना है।
इस मामले में सबसे अधिक परेशानी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में हैं। इस पार्टी में टिकट वितरण से लेकर अब तक का घटनाक्रम गुड्डे गुड़ियों का खेल बन गया है। पहले इस पार्टी की ओर से 1999 में बसपा की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके कमलकांत उपमन्यु को इस बार टिकट दिया गया था। उन्होंने अपना प्रचार शुरू भी कर दिया था मगर नामांकन की तिथि से पहले उनका टिकट काटकर रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को दे दिया गया । सुरेश सिंह ने अपना प्रचार शुरू किया ही था कि बसपा ने गोवर्धन सिंह को जिला अध्यक्ष पद से हटा दिया और उनकी जगह सत्य प्रकाश कर्दम को जिला अध्यक्ष बना दियागया ।
चुनाव के दौरान अपनी उपेक्षा से आहत उपमन्यु ने बसपा से त्याग पत्र दे दिया है।उपमन्यु का टिकट काटने से यहां का ब्राह्मण वर्ग नाराज हो गया है क्योंकि ब्राह्मणों पर उनका अच्छा प्रभाव है। उधर विभीषणों ने एक नकली विडियो को सोशल मीडिया में डलवाकर सिंह के लिए और परेशानी पैदा कर दी थी।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का हाल भी अन्य दलों से भिन्न नही है। यह बात दीगर है कि मथुरा का विकास कराने तथा फिल्म अभिनेत्री होने के नाते भाजपा प्रत्याशी बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी से बहुत आगे हैं। हालांकि देखना यह है कि उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास और चीनी मिल मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी का दावा कि हेमा की जीत उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जीत होगी कहां तक सही उतरता है।इ
इस पार्टी के विभीषणों ने काफी समय पहले विधान सभा चुनाव मे अंदरखाने से कांग्रेस को सपोर्ट कर भाजपा के देवेन्द्र शर्मा को मामूली वोटों से पराजित करा दिया था यह बात दीगर है कि उस समय उनके घ्रणित कार्य के लिए कार्यकर्ताओं ने उनकी पिटाई भी कर दी थी।
खास बात यह है कि मोदी ने भले ही आरएलडी से चुनावी समझौता किया हो पर स्थानीय स्तर पर भाजपा के जिले के कर्णधार आरएलडी से तालमेल बनाना तो दूर उन्हें कार्यक्रम की सूचना तक नही दे रहे हैं तथा इस पर एक बार स्वयं हेमामालिनी नाराजगी प्रकट कर चुकी हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सभा में जिस प्रकार आरएलडी के प्रदेश उपाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह की उपेक्षा हुई तथा उन्हें मंच में नही बुलाया गया वह पार्टी के क्षत्रपों की कारगुजारी बताती है ।
नरेन्द्र सिंह 2019 में हेमा के खिलाफ आरएलडी से चुनाव लड़ चुके हैं तथा उन्हें साढ़े तीन लाख से अधिक मत उस समय मिले थे। ठाकुर होने के नाते उनका ठाकुरों पर अच्छा प्रभाव है पर भाजपा क्षत्रपों ने उनका उपयोग नही किया जब कि हेमामालिनी से उनकी मुलाकात में सिंह ने उन्हें पूरा सपोर्ट करने का आश्वासन दिया था। हेमा का चुनावी कार्यक्रम भाजपा के ग्रुप में न डालना एक अन्य उदाहरण है। उधर हेमा के मथुरा और वृन्दावन के जलूस में जिस प्रकार भीड़ उनके सपोर्ट में उमड़ी उससे विभीषणों के अरमानो में तुषारापात होना लाजिमी है।
कांग्रेस की हालत तो और भी खराब है ।बाक्सर ब्रजेन्द्र सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस सपा गठबंधन ने मुकेश धनगर को चुनाव मैदान में उतार तो दिया पर इस दल के विभीषण उनको पराजित देखने के लिए एक प्रकार से गांठ बांध चुके हैं। एक बड़े नेता ने तो एक बार यह कहा था कि उस ’’चिरकुट’’ की सभा में वे नही जाएंगे ।
पार्टी के जिला अध्यक्ष से हाल में जब यह पूछा गया कि राहुल, प्रियंका या अखिलेश में से कौन मथुरा चुनाव सभा करने को आ रहा है तो उन्होंने कहा कि जब वार्ड स्तर के कार्यकर्ता को लोकसभा का टिकट दिया जाएगा तो यही हाल होगा।
सबसे हास्यास्पद पहलू तो यह है कि कांग्रेस आलाकमान एक ओर मुकेश धनगर को प्रत्याशी बनाता है दूसरी ओर उनकी विजय के लिए कोई प्रयास नही करता है। कुल मिलाकर मथुरा का चुनाव अब दिलचस्प मोड़ पर इसलिये पहुंच गया है कि यह चुनाव भाजपा की लोकप्रियता का बैरोमीटर बनेगा।